Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 125
________________ (१२४) जमीनकी या दूसरी चीजकी ठोकर न लगे ऐसे रखना, अगर कच्चा फुट जायगा तो सिवाय छोटे २ बीजके और कुछ नहीं निकलेगा, इस लिये अच्छी तरहसे इसकी रक्षा करना । कितनेक कालके बाद उसमेंसे स्वयं घोड़ा निकलेगा । अब बह दुर्भागी उस कोल्हको लेकर अपने देशकी तरफ लोटा । एक दिन किसी बनमें रसोई करने लगा तब वृक्षपर चढ़ कर जिस कपड़ेसे अपनी जानकी तरह कोल्हेको बचा रहा था, एकवृक्षकी मजबूतडालीसे उस कपड़े की गांठ लगा कर उस कोल्हेको लटकाया गया उसके नीचे ऐसी घनी झाड़ी थी, जिसमें अगर कोल्हा गिर जाय तो पता लगाना भी मुश्किल हो जाय । दैवयोगसे ढीली दी हुई गांठ खिसक गई और कोल्हा उस झाडीमें गिर गया। उसके पतनशब्दसे भड़क कर उस झाडीमें रहा हुवा एक खरगोश ( ससा ) निकल कर दूसरी तरफ भागता हुआ उस दुर्भागीने देखा और उसके पीछे दोड़ने लगा । परन्तु खरगोशकी दौड़के आगे उसकी दोड़ ही क्या थी जिससे वह पहुंच सके। अब वह मूढ विचार करने लगा कि हाय ! हाय ! यह कच्चे अंडेसे निकला हवा छोटासा घोड़ा भी इतनी तेज चालसे दौडता है अगर परि. पक्कदशाको प्राप्त हुए अण्डेसे इसका जन्म होता तो न मालूम किस हवाई चालसे चलता । और बेशक मेरे मित्रके कथनानुसार चौदहसौ तो क्या लेकिन दो हज़ार रूपयोंमें खरीदने वाले भी हजारों ग्राहक मिलते । परन्तु हाय ! मेरा उतना भाग्य कहां! जो वह फल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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