Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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( ११५) न्योछावर लीजाती है वह जूदे २ गांवके सङ्घके ठहराव मूआफिक होती है, किसी गांवमें १० रूपया लिया जाता है तो किसी गांवमें पांचका रिवाज जारी करदें तो कौन मनाई करता है । यह तो एक देवद्रव्यकी वृद्धिके लिये श्रीसंबकी तरफका कायम किया हुवा रिवाज है । इस रिवाजको पुण्यशाली पुरुप बहुत भावसे स्वीकार करते हैं और कहते हैंकि अहोभाग्य एकतो तपश्चर्याका लाभ उठाया, और दूसरे दानकाभी लाभ मिला, जिससे एक सोना और दूसरी सुगन्ध जैसा हुआ। और जो दुर्भाग्य शिरोमणि होते हैं वेही वर्मादेका उत्तमोत्तम पदार्थ खाकरभी दश पंद्रह रूपया देनेमें मरणे जैसा मानने हैं । और जो भावसे देते हैं उनपरभी उनको द्वेष आता है। और वेचरदासका यह कहनाकि-मालाकी उतनी किम्मतही नहीं होती यहभी बुद्धिशून्य है, क्योंकि अगर इस तरह कहोगे तो फिर देवमंदिरमें आरती उतारने का धी बोला जाता है वहांभी यह सवाल पेश होगाकि आरती की या उसमें भरे हुए धीकीपी कीमत उतनी नहीं होती जितना उसपर घी बोला जाता है । इसी तरह प्रभुको रथ में लेकर बैठनेमें या प्रभुको पधरानेमें हज़ारो रुपयोंकी बोलियां होती हैं तो वहांपरभी बेचरदास कह देगाकि मूर्तिकी इतनी कीमत नहीं होती जितने रूपैये बोलीमें दिये जाते हैं। अगर इस तरहका विचार करतो फिर सर्व विषयमें नास्तिकता हो जाती है । वेचरदास ! तुम धार्मिकभावनामें कीमत गिनते हो इससे तो तुह्मारी बुद्धिकीही कीमत हो जाती है। क्योंकि गुरुमहाराजसे एक वासक्षेप जैसी वस्तु
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