Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa

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Page 117
________________ ( ११६ ) लेकर भक्तजन उस स्थानपर गोनीयोंकी वृष्टि कर देते हैं । बतलाइये अब वासक्षेपकी क्या कीमत है ? तुझारे हिसाब से तो कुछभी कीमत नहीं परन्तु भाविक भक्त के लिये वही अमूल्य है । उपधान के विषय में भी ऐसेही समझना चाहिये | बेचरदासके मन में तो माल्यका कुछ मूल्यही नहीं मालूम होता है । परन्तु भाविक भक्तके मनमेंतो यह शिवरमणी प्राप्त करने की योग्यतासूचक माला अमूल्यही प्रतीत होती है, और शास्त्रीयनियमसेभी एसाही होना चाहिये । हां ? बेचरदास जैसे गरीब आदमी पर फर्ज पाडना ठीक नहीं. जिससेकि विचारे बेचरदासको शिरपर ऋण करके भी देने पडें परन्तु बेचरदासकामी फर्ज था कि भावनगर के श्रीसङ्घ (सेठियों ) के सम्मुख हाथ जोडकर अपनी गरीब हालतका प्रकाश करता । मेरे खयालसे भावनगर के दयालु शेठियोंके दिलमें अवश्य दया आती और बेचरदासको छोड देते । अफसोस हैं बेचरदासकी अकलपर कि जिसने पञ्च छ वर्षके बाद व्यर्थ पुकारकाकि जिससे कुछभी फल नहीं निकला | अगर उसीवख्त भावनगर के आगेवानों को कह देतातो कुछ फलभी निकलता | अब सारी दुनियाको सुनानेसे क्या मतलब ? | अस्तु, बेचरदास ! अब शान्ति करो । और ' गतं न शोचामि इस 'वाक्यका मनन करो । , बेचरदास - ' घणी वखते आठ अने चौद उपवास करी सकनाराओ सारा खातामा आठ आना भरतां मरवा पड़े छे, ह हूं तमने पुहुं हुं के द्रव्य परनो जेनों मोह उतर्यो नथी तेवा माणसनो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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