Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(६८)
समालोचक-लीजिए मूलपाठका प्रमाण दिया जाता है. हत्कल्पके पहले उद्देसे में लिखा है कि
"न कप्पइ निग्गंथाणं आवणगिहंसि वा रत्थामुहांस वा संघाडगसि वा तियंसि वा चउकंसि वा चचरंसि वा अंतरावणंसि वा वत्थए ॥ १२ ॥ कप्पइ निग्गंथाणं आवणगिहंसि वा जाव अंतरावणसि वा वत्थए ॥ १३ ॥ नो कप्पइ निग्गंथाणं इत्थिसागारियउवस्सए वत्थए ॥ २७ ॥ कप्पइ निग्गंथागं पुरिससागारिए उवस्सए वत्थए ॥ २८ ॥"
भावार्थ-साध्वीओंको दुकानमें सरियान मकानमें शृंगाटकाकारमार्गवाले स्थानों और तीन-चार या अनेक रास्ते जहांपर मिलते होवें वहां और अंतरापणस्थानमें रहना नहीं कल्पे ॥ १२ ॥ साधुओंको पूर्वोक्त स्थानमें (साध्वीको निषेधकिये हुए स्थानमें) रहना कल्पता है ॥ १३ ॥ स्त्रीसहित उपाश्रयमें साधुओंको रहना नही कल्पता ॥ २७ ॥
और साधुओंको पुरुषसहित वस्तिमें रहना कल्पता है ॥ २८ ॥ देखिए ! इन पाठोंसे साधुओंका शहरमें रहना साफ सिद्ध हुवा । क्योंकि-जगलमें ही रहना होता तो मूल आगमोंमें ऐसा जिकर न आता कि 'दुकानमें या कूचेके अग्रभागमें बनेहुए स्थानमें या तीन रास्ते जहां मिलते हों इत्यादि स्थानों में साध्वीओंको रहना नहीं
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