Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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सिद्ध होता है । इसी तरह वही हेमचन्द्राचार्य महाराज श्रीसुमतिजिनचरित्र में पूर्वभवका वर्णन करते हुए पुष्कलावतीके अंदर रही हुइ शङ्खपुरीके वर्णनमें लिखते हैं कि__“ विचित्रचैत्यहादि-ध्वजदन्तुरिताऽम्वरम् ।
तत्र शङ्खपुरं नाम, पुरमस्त्यतिसुंदरम् ।। ४ ॥"
भावार्थ-अनेकजिनमंदिरोंकी ध्वजाओं करके दन्तुरित किया है आकाश जिसने ऐसा शङ्खपुर नाम नगर है, ॥ ४ ॥ इससे भी नगरमें जिनमंदिर सिद्ध होते हैं । तथा श्रीहमिनेमिनाथ चरितमें देवताओंकी बनाई हुई द्वारिकानगरीके वर्णनमें लिखा है कि
" विचित्ररत्नमाणिक्य श्चत्वरेषु त्रिकेष्वपि । जिनचैत्यानि दिव्यानि, निर्मितानि सहस्रशः ॥ ४०३॥"
सर्ग ५ पर्व ८ अर्थ-द्वारिकानगरीमें तीन रास्ते मिले हो वहां और चत्वरमें विचित्ररत्नमाणिक्यों करके दिव्य जिनमंदिर बनाये ॥ ४०३ ॥
श्रीनेमिनाथचरित्र में नल राजा अपने पुरमें प्रवेश करते समय कोशलाके वर्णनमें दमयंतीसे कहता है कि" कोशलायाः परिसरमासाद्य च नलोऽवदत् ।
इयं हि नः पुरी देवि, जिनायतनमण्डिता ३९१" इस पा उसे भी प्रथम शहरमें जिनमंदिर थे ऐसा सिद्ध होता है।
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