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________________ ( ७७) सिद्ध होता है । इसी तरह वही हेमचन्द्राचार्य महाराज श्रीसुमतिजिनचरित्र में पूर्वभवका वर्णन करते हुए पुष्कलावतीके अंदर रही हुइ शङ्खपुरीके वर्णनमें लिखते हैं कि__“ विचित्रचैत्यहादि-ध्वजदन्तुरिताऽम्वरम् । तत्र शङ्खपुरं नाम, पुरमस्त्यतिसुंदरम् ।। ४ ॥" भावार्थ-अनेकजिनमंदिरोंकी ध्वजाओं करके दन्तुरित किया है आकाश जिसने ऐसा शङ्खपुर नाम नगर है, ॥ ४ ॥ इससे भी नगरमें जिनमंदिर सिद्ध होते हैं । तथा श्रीहमिनेमिनाथ चरितमें देवताओंकी बनाई हुई द्वारिकानगरीके वर्णनमें लिखा है कि " विचित्ररत्नमाणिक्य श्चत्वरेषु त्रिकेष्वपि । जिनचैत्यानि दिव्यानि, निर्मितानि सहस्रशः ॥ ४०३॥" सर्ग ५ पर्व ८ अर्थ-द्वारिकानगरीमें तीन रास्ते मिले हो वहां और चत्वरमें विचित्ररत्नमाणिक्यों करके दिव्य जिनमंदिर बनाये ॥ ४०३ ॥ श्रीनेमिनाथचरित्र में नल राजा अपने पुरमें प्रवेश करते समय कोशलाके वर्णनमें दमयंतीसे कहता है कि" कोशलायाः परिसरमासाद्य च नलोऽवदत् । इयं हि नः पुरी देवि, जिनायतनमण्डिता ३९१" इस पा उसे भी प्रथम शहरमें जिनमंदिर थे ऐसा सिद्ध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
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