SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ७६ ) " अथाचालीत् पुरोमध्यं, वीक्षितुं दिवसात्यये । X X X X निधानमिव धर्मस्य, दृष्टवान् जिनमंदिरम् | " 1 अर्थ — इसके बाद यह कुलध्वज सायंकालको नगर देखने के लिये गया वहां धर्म के निधानसमान जिनमंदिर को देखा । इस पाठसे भी शहर में जिन मंदिर थे ऐसा स्पष्ट सिद्ध होता है । और भी देखिए श्रीसुपासनाहचरितके ११२ पृष्ठ में अरिकेशरीनाम के - महापुण्यशाली राजाने अनेक जिनमंदिर बंधाये – तथा च तत्पाठः" पइनगरं पइगामं, सव्वत्थ जिणेसराण भवणाई । कारेइ निययदेसे, विसेसओ सुविहिअजणस्स " २६२ अर्थ — उस पुण्यशाली महानुभाग अरिकेशरी राजाने अपने देशमें प्रत्येकनगर और प्रत्येकमाममें जिनमन्दिर बनवाये ॥ २६२ ॥ इससेभी नगरमें मंदिर सिद्ध होते हैं । और श्री हेमचन्द्राचार्य महाराज श्रीमहावीर चरित्र के पृष्ठ ७ क्षत्रियकुंडग्रामके वर्णनमें लिखते हैं कि वें पर " स्थानं विविधचैत्यानां धर्मस्यैकनिबन्धनम् । अन्यायैरपरिस्पृष्टं, पवित्रं तच्च साधुभिः । १६ । " इस लोकसे शक्रने क्षत्रियकुंड ग्रामका स्वरूप वर्णन किया है । जिसके मुख्य प्रथमपादका यह अर्थ है कि क्षत्रियकुंडग्राम विविध जिनमंदिरोंका स्थान है. इससेभी शहर में जिनमंदरों का होना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003135
Book TitleDevdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
PublisherSha Sarupchand Dolatram Mansa
Publication Year
Total Pages176
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, & Devdravya
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy