Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
View full book text
________________
(८१) कह कर कुल्हाडा चलाया तो एक ही घावसे दो भाग हो गये और देखा तो पूर्वकी बनाई हुई सर्वालङ्कारसे विभूषित प्रभु महावीरकी मूर्ति निकली। उस मूर्तिको लाकर राजमहलके समीर मदिर बनाकर उसमें स्थापन की ।। इस निशीथचूर्णिके पाठसे भी साबित होगया कि प्रथमसे ही गाममें भी मन्दिर बनते आते हैं, आज कोई नवीन बात नहीं है । मुझे बड़ा अफसोस होता है कि-भाषग देते वक्त वेचरदासने कुछ नशा तो नहीं किया था ? जो एक भी बात उसकी सच्ची नहीं जान पड़ती। जितनी बातें लिखी हैं सब झूठी ही झूठी निकलती हैं-उसका अदृष्ट ( भाग्य ) ही कोई टेडा हो गया है क्या ? । हां ऐसा ही होना चाहिये । अन्यथा इतने सूत्र जिन बातों को साबित करते हैं उन बातोंको यह कैसे उडाता ! इससे साबित होता है कि उसका चक्कर खाया हुवा तकदीर उसको अवश्य टडी गतिसे नरक तक पहुंचा देगा। फिर देखिए, आवश्यकके तृतीय अध्ययनमें लिखा है कि'चेइयपूआ किं वयरसामिणा, मुणियपुव्यसारेण । न कया पुरिआइ तओ, मोक्खंगं सावि साहूणं ॥'
इसका भावार्थपूर्वके सारको जाननेवाले श्रीवज्रस्वामीने पुरीनामके नगर चैत्यकी पूजा ( पुष्प लानेमें सहायतारूप ) क्या नहीं की हैं अपि तु की हैं। इससे समयविशेषमें साधुओंक वास्तभी ऐसी पू
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org