Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(८२) मोक्षान बनजाती है। देखो! आवश्यकजीके पाठसे भी नगरमें जिनमंदिर था ऐसा सिद्ध होता है । फिर बेचरदासका कहना कैसे सिद्ध हो सकता है कि-' बघां देहराओ जंगलों अने डंगरो पर हतां' देखिए, इसी तरह पञ्चमाऽङ्गश्रीभगवतीसूत्रके दूसरे शतकके पांचवें उद्देसेमें तुजियानगरीके श्रावकोंके अधिकारमें लिखा है कि
"जेणेव सयाइंसयाइं गेहाइं तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता ण्हाया कयबलिकम्मा"
भावार्थ-वे श्रावक लोक अपने २ घर पर आये और स्नान करके प्रभु पूजाकी । इस भगवतीके पाठसे भी तुङ्गियानगरीमें अनेक जिनमंदिर थे ऐसा सिद्ध हुआ। फिर कौन कह सकता है कि 'शहरमें मंदिर नहीं थे ।' इसके बाद यह कहना कि 'आ देहराओ आज जेम पईसाथी उभराई गयेलां होय छे तेम ते वखते नहोता ' बिलकूल मिथ्या कल्पना है । अगर इस विषयको सिद्ध करनेवाला कोई भी प्रमाण होता तो बेचरदास अवश्य कहता ! परन्तु कहे क्या ? जिसको झूठीही बात कहकर लोगोंको भाखा देना है उसके पास प्रमाण कहांसे हो। वेचरदासने तो ऐसा कियाकि जैसे कोई जन्मभिक्षुक मांगता २ किसी सेठके घर पर जा चढ़ा, वहां पर लड्डुओंके शिखापर्यंत भरे हुवे बहुत स्थाल देखे, और आहा ! हा! हा! हा ! हा! कह कर बोला कि-' हा
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