Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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बाप इतने लड्डुओंसे भरे हुवे स्थाल भूतकालमें किसीके भी ‘घरमे नहीं थे' क्या उस भिखारीकी यह बात सत्यहो सकती है ? कि भूतकालमें इतने लड्डुओंसे भरे हुये इतने स्थाल नहीं थे. कदापि नहीं । बस बेचरदासके कथनको भी ऐसाही समझना चाहिये । मात्र इतना फर्क है कि-सेठके लड्डुओं पर भिखारीकी नजर पड़ी जिससे खानेवालोको कष्ट उठाना पड़ा, और यहां पर देवद्रव्य होनेसे बेचरदासकी नजर नहीं लग सकती । इसके बाद यह कहना कि 'देहराओने दरवाजा हताज नहीं, यह कहना ऐसा है जैसे वेचरदास .हदे कि मेरा कोई पिता थाही नहीं में अपने आपही पैदा हो गया हूं ! जैसे बेचरदासकी यह बात ( मेरा पिता नहीं था ) प्रमाण शून्य और अनुभव विरुद्ध होनेसे नहीं मानी जा सकती कि 'बेचरदास बिना बापके पैदा हुआ हो' बस इसी तरह प्रथमकी बात ( देहराओने दरवाजा तो हतान नहीं) भी प्रमाणशून्य और अनुभवाविरुद्ध होनेसे कदापि सिद्ध नहीं हो सकती है.
बेचरदास-चैत्यशब्दनो अर्थ देवलवृक्ष तथा बीजा अनेक थाय छे परन्तु चैत्यशब्दनो शद्वार्थ ए छे के, मरण पामेला संत महंतनी यादगिरी, तेज स्थले उभुं करवामां आवेढं स्मारक " इत्यादि--- ..
. समालोचक-बेचरदासने वदतो व्याघात जैसा किया है। क्योंकि-प्रथम तो चैत्यशब्दके अनेक अर्थ कहता है परन्तु
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