Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
View full book text
________________
(१०५) तटस्थ-भो महात्मन् ! मेरे पर आपकी तरफसे बड़ा उपकार हुआ है । मैं अपनी उम्रमें गृहस्थ सूत्र पढ़ें इस दुष्टश्रद्धाको अपने नजदिकमें ही नहीं आने दूं। आप कृपाकरके आगेका खण्डन सुनावें।
समालोचक-इसके बाद वेचरदासने जैनसाहित्यके विषयमें अगडं बगडं उत्पटांग बातें कह डाली हैं जिन बातोंका जवाब प्रथम में लिख चुका हुं इस लिये यहांपर दुबारा लिखनेकी आवश्यकता नहीं हैं । और यहभी बात है कि खुद बेचरदासने पूर्वोक्त जैनधर्मप्रकाश नामके मासिकपत्रमें कल्पितका अर्थ असत्य ऐसा नहीं स्वीकारा है किन्तु आलङ्कारिक कवुल किया है। जब कल्पितका अर्थ असत्य नहीं है तो बेचरदासके इस कथनसे ही कथाभाग की सत्यता सिद्ध हुई। और वह सत्यताभी कैसी (वेचरदासके करे हुवे अर्थसे ) आलङ्कारिक है इससे और भी अधिक खुशीकी बात हुई कि एक सोना और दूसरी सुगन्ध सिद्ध हुई है। जब बेचरदासके बचनसे साहित्यकी चढ़ती कला सिद्ध हुई तो फिर इस वियषमें ननुनचकी जरूरत ही क्या रही। अगर बेचरदासने तंत्रिके सम्मुख कल्पितकथाका अर्थ झूठी कथा ऐसा किया होता तो अवश्य इस विषयमें भी कुछ लिखता । इसके बाद एक ईंटकी चौरीसे चोथीनरकमें जानेके दृष्टांतको कहांसे लिया ! ऐसा तंत्रीने अपनी सभामें वेचरदाससे प्रश्न किया था इस विषयका खुलासाभी बेचरदास नहीं कर सका है । और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org