Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(१०३ ) करता और यह विचारताकि साधुओंको अगर अपना स्वार्थही पोषण करना था तो आगम उनके हाथमेंही थे तुरत बिगाड़ देते। परन्तु साधु लोग बेचरदास जैसे धर्मभ्रष्ट नहीं थे जो एक वचनकीभी अन्यथा प्ररूपणा करें। मतलब यह सिद्ध हुवाकि ' अपने शिथिलाचारको छुपानेके लिये साधु लोग श्रावकोंको सूत्र पढ़नेकी मनाई करते रहे ' बेचरदासकी यह कल्पना ऐसी है कि जैसे कोइ कहेकि गधेके सींगसे बने हुए तीर से मैने बांझके पुत्रको पिंधकर आकाशकुसुमको विधा । और विशेषावश्यक का नाम लेकर लोगोंको झूठा धोखा देता है, क्योंकि - संपूर्ण विशेषावश्यकमें एक पङिभी ऐसी नहीं है कि जिसमें लिखा होकि ' श्रावक स्वयं सूत्र पढें ।' अस्तु, ऐसी गप्प मारनेवालोंकी परमाधामीही खबर लेंगे । और ' साधुलोग खयंसूत्र सुनाना स्वीकारते हैं पर श्रावक स्वयं सूत्र पढेतो विरोध जाहिर करते हैं। वेचरदासके इस कथनसेभी शिथिलाचारको छिपाने के लिये साधु श्रावकको सूत्र पढ़नेका निषेध करते ऐसा सिद्ध नहीं हुवा । क्योंकि अगर इसी भयसे श्रावकको सूत्र पढनेका निषेध करते होंतो फिर स्वयं सूत्र ग्रन्थोंको सुनाते क्यों ? देखिए बेचरदासके इस विरुद्ध कथनसेही उसमें उन्मत्तता सिद्ध होती है । और एक यहभी बात है कि सूत्रोंके सिवाय र अनेक प्रकरणग्रन्थ हैकि जिनमें भली प्रकारसे साधुओंके आत्र का वर्णन किया गया है अगर साधु शिथिलहीथे और हमारी शिथिलताको श्रावक जान जायंगे तो हमें खड़ेभी नहीं रहने देंगे ऐसा उन्हें भय थातो फिर
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