Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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( १०२ )
होनेके कारण सूत्र पढ़ना तो दूर रहा परन्तु श्रावक होकर जो पढ़ता हो उसेभी सहस्रशः धिक्कारवाद देना चाहिये । और जो बीजही दग्ध हो गया हो तो फिर उपाय नहीं जिसकी इच्छा में आवे वैसा करें और अनन्तकाल तक संसार में भटक २ मरें कौन रोकता है । इसके बाद " तांत्रिक युगना साधुओनुं चारित्र्य एटलं तो शिथिल थई गयुं के तेओने एवं लाग्युं के जो श्रावको खरा साधुओ केवा होय ते बाबत आगमोमां जोशे तो आपणा जेवा शिथिलचारित्रवालाने उभान नहीं राखे, अने आपणने कदाच साधु तरीके कबुलशे पण नहीं " बेचरदासका यह कथनभी युक्तिशून्य है । यथा प्रथम में लिख आया हूं कि - " जैन मुनियों पर तात्रिकयुगका लेशमात्र भी असर नहीं हुवा है । " अगर थोड़े कालके । लिये वेचरदासकी इस असत्य कल्पनाको मान लेवें तौभी इसका मनोरथ सिद्ध नहीं हो सकता क्योंकि अगर मुनियोंपर तान्त्रिकयुगका असर हुवा होता तो फिर शास्त्र पढ़नकी मनाई करने की अपेक्षा शास्त्रों में शिथिलाचार के पोषक वाक्य डालना यानी सूत्रोंकोही पलटा देना यही इनके सदैव शिथिलाचार चलनेका मजबूत उपाय था इसलिये इसी उपायका शरण लेतेतो उनकों कौन रोक सकता था । बस इससेभी साबित होता हैकि बुद्धिरूप नयन पर पक्षपात के चस्मे चढ़ा कर जिसवक्त बेचरदासने जैनधर्मविरुद्ध वकवाद शुरू किया है उसवक्त मगजमें अवश्य गरमी चढ़ जानी चाहिये । अन्यथा एक बालकभी समझ सके ऐसी असत्य कल्पना कदापि नहीं
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