Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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( ९१) बेचरदास-" असल देहराओमां मूर्तिओ बधी पद्मासनवालिज हती कंदोरावाली मूर्ति भो जेम हती नहीं तेम नममूर्तिओ पण हती नहीं पाछलथी ज्यारे श्वेताम्बरो अने दिगम्बरो एवा वे पक्ष पड्या त्यारे तेओए सघली मूर्तिओ वहेंची लेवा मांडी। पाछलथी ते मूर्तिओ एक बीजानी ओलखाय ते माटे हाल जे निशानीओ छे ते लगाड़वामां आवी छे । असल मूर्तिओमां आवी निशानीओन नहीं हती।"
समालोचक-घेचरदासकी यह बात जब सत्य हो सकती है कि वह ऐसी कोई प्राचीन मूर्तिको दिखलाता, अथवा कहता कि अमुक स्थान पर दोनो प्रकारके चिन्हरहित मूर्तिएं मौजुद हैं। बेचरदासने जो जो बातें जाहिर की है बालबकवादके तुल्य हैं । अगर इस विषयका निश्चय करना हो तो जैनधर्मप्रकाशके पुस्तक ३५ अङ्क ३ देखना चाहिये । उसमें इस विषयके प्रश्नोत्तर दर्ज हैं । ये प्रश्न बेचरदाससे सभाके तन्त्रिने रुबरु किये हैं। इन प्रश्नोत्तरोंको पढ़नेसे हमारे पाठकोको स्पष्ट मालुम होजायगा किबेचरदासने मूर्तिके विषयमें निरी झूठी गप्प मारी है और बचरदासका यह कहना कि पीछेसे मूर्तिएं बांट लेने लगे तब निशानीएं लगादी, सर्वथा असत्य है । क्यों कि कब और किस शहर में श्वेताम्बर दिगम्बरोंने एकत्रित हो कर मूर्तिएं बांटली, इसका कोई प्रमाणही नहीं बतलाया । बतलाए कहांसे ? जहां गप्पबाजीका खेल होता है वहां कोई प्रमाण मिल सकता है ? कदापि नहीं। इस
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