Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
View full book text
________________
(८५) उपरके चमकते हुए सुवर्णकलश महाराज साहिबके पञ्जाब, गुजरात, मारवाड, मेवाड़ादि देशोंमें किए हुए धर्मप्रकाशकी स्मृति दिलाते है। परन्तु इसके अलावा और भी अनेक गांवो तथा नगरोंमें उनकी यादगिरीके लिये स्थान बने हुए हैं इससे गामके बाहरही स्मारक बनते हैं। यह बात सर्वथा असत्य सिद्ध होती है। क्योंकि ऐसा तो होही नहीं सकता कि आजकलकी तरह प्रथमके लोगोंमें भक्ति नहो और जब भक्ति हो तो स्थान २ में उनकी यादगिरी बननेका संभव है । अस्तु, मन्दिरका विषयही इससे पृथक् है ।। क्योंकि अगर काल किए हुए स्थान पर महात्माओंकी यादगिरीके निमित्त बने हुए स्मारकही चैत्य कहलाएं तो महावीर प्रभुका मंदिर पावापुरी के, श्री नेमनाथ भगवानका गिरनारजीके, आदीश्वर प्रभुका मंदिर अष्टापदजीके. वासुपूज्यजीका चंपापुरीके और वीशतीर्थकर भगवान के मन्दिर सम्मेतशिखरके सिवाय और किसी स्थानपर नहीं होना चाहिये । और स्थान २ पर जिनमंदिरका अधिकार आता है. इस विषयका विवेचन पहिले लिख आए हैं । और प्रत्यक्षमें भी अनेक स्थलों पर ऐसे २ प्राचीनतीर्थ मौजूद हैंकि जहां पर किसीकी भी यादगिरीका सभवहीं नहीं । अत: वेचरदासकी इस असत्यकल्पनाको आस्तिकवर्ग कदापि नहीं स्वीकार कर सकता । देखिए, एक
और भी प्राचीन प्रमाण सुनाते हैं इससे भी बेचरदासकी कल्पनाकी असत्यता जाहिर हो जायगी। कलिकाल सर्वज्ञ श्रीहेमचन्द्राचार्यकृत श्रीऋषभप्रभुके चरित्रमें भगवान् ऋषभदेवजीके पूर्वभवके वर्णनमें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org