Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(८६) लखा हैकि श्रीऋषभदेवजीके जीव और बाकीके पांच मित्रोंने मिलकर एक मुनिके रोगको दूर करनेके लिये औषधादि सामग्री एक. त्रकी, और उससे मुनिको नीरोग किया, और बची हुई सामग्रीको बेचकर बड़ा भारी आलिशान जिनमंदिर बनाया। तथा च तत्पाठः--
" ततोऽवशिष्टगोशीर्षचंदन रत्नकम्बलम् । तत्र विक्रीय जगृहुस्ते स्वर्ण बुद्धिशालिनः ॥ ७७८ ॥ तेन स्वर्णेन ते चैत्यं, सुवर्णेन स्वकेन च ।
कारयामासुरुत्तुङ्गं, मेरुशृङ्गमिवाऽर्हतम् ॥ ७७९ ॥ अब बेचरदासको विचार करना चाहिये कि-अगर मृतमहन्तोकी यादगिरीमें ही मन्दिर बनानेका रिवाज होता तो बतला. इये इन छ मित्रोंने किस मृतमहंतकी यादगिरीमें मंदिर बनाया था? बस इससे साबित है कि आजसे नहीं किन्तु अनादिकालसे स्मारककी रीतिसे नहीं मगर स्वतन्त्ररीतिसे जिनमन्दिर बनते आये हैं, बनते हैं, और बनेंगे । बेचरदासके निरर्थक थूक उड़ानेसे कुछ भी नहीं बनता । नाहक बिचारा यहां परभी हांफहांफ मरेगा और नरकोंमें भी हांफेगा।
. . बेचरदास' आ भभकानी चीजों देवलोमा हाल दृश्य थाय छे ते असल हतीज नहीं'. इत्यादि ।
समालोचक-ऐसी देदीप्यमान वस्तुएं मंदिरोंमें प्रथम नहींथी इसमें कुछ प्रमाण बताओं, अन्यथा तुमारी असत्यकल्पना कदापि मान्य नहीं हो सकती । क्या प्रथम समयमें द्रव्यकी कमी थी ? जिससे मन्दिर शुन्य पड़े रहते थे, या शास्त्रका आदेश नहीं था।
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