Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(७५) कहुंछु ' इन शब्दों तकका खण्डन उपरके खण्डनमें हो चुका है। इस लिये आगे के खण्डनको श्रवण कीजिए !
तटस्थ-भला, सुना दीजिए !
बेचरदास- हवे भूतकालमां आपणा देराओनी केवी स्थिति हती ते बाबत अजवालुं पाड़ीश. असलमा बधां देहराओ जंगलों अने डुंगरों पर हता. आ देहरांओं आज जेम पैसाथी उभराई गयेलां होय छे तेम ते वखते नहोतां एटले के आ देहरांओ त्यां सुधी नोखम वगरनां हतां. देहराओंने दरवाजाओ तो हतान नहीं।'
समालोचक-वाहरे वाह ! मूर्खानन्द ! भाषणके समय के लोगोंको तो अनभिज्ञ समझ लिया परन्तु क्या सारी दुनियाको अनभिज्ञ समझ ली थी ? जो ऐसी गप्प मारदी कि ' असलमा बधां. देहराओ जंगलोंमां अने डुंगरों पर हतां' क्या यह मालूम नहीं हुवाकि मेरे भाषणका मुखतोड़ जवाब देनेवाले अनेक सूत्रपाठी महात्मा मौजूद हैं ? एक तरफसे वे वरदास कहता है कि ' मैंने जैन आगम देखें हैं ' और दूसरी तरफ कहता है कि-'बघां मंदिरों जंगलों अने डुंगरों परज हता' इससे साबित होता है कि बेचरदासने अङ्गशास्त्रोंका अध्ययनही नहीं किया, अन्यथा ऐसी गप्प कैसे लगाता । देखिये ! प्राचीनकालमें भी अनेक जैनमंदिर शहरों में थे। ऐसा अनेक ग्रन्थ और सूत्रों से मैं साबित कर देता हूं. श्रीविनयच. न्द्रमरिकृतमल्लीनाथचरित्र के आठवें सर्गमें लिखा है
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