Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
View full book text
________________
(४१) औषधिफलवस्त्रसुवर्णमुक्तारत्नादिकैश्च प्रतीतैरेव । नवरमौषध्यो ब्रीह्यादयः । फलानि नालिकेरदाडिमादीनि इतिगाथार्थः ॥ २९ ॥
भावार्थ-औषधी-फल-वस्त्र सुवर्ण-मोती और रत्नादि प्रधानद्रव्यते भगवान्की उत्कृष्टपूजा करनी ॥ २९ ॥ इसी प्रकारसे श्रीमन्नेमिचन्द्रसूरि महाराज-सं. ११४१ में अपने बनाए हुए महावीरचरियनामकग्रन्थमें इसी विषयको पुष्ट करनेवाली सिद्धान्तकी गाथा लिखते हैं" न्हाणविलेवणवरवासकुसुमधूवक्खएहि वत्थेहिं । रयणकणगाइएहिं, करेइ पूर्व जिणिंदाणं ४४५ "
भावार्थ-स्नान-विलेपन-प्रधानवास-पुष्प-धूप-अक्षत-वस्त्रों करके और २त्न सोना आदि करके जिनेंद्रभगवान्की पूजा करें ॥ ४४५ ॥
इससे साबित हुआ कि ' देवद्रव्य ' यह एक प्राचीन शास्त्रोक्त कथन है.
तटस्थ---आहा ! आपने बहुत अच्छे अच्छे प्रमाण देकर देवद्रव्यकी सिद्धि करने में किसी बात की भी कसर नहीं रक्खी है तथाऽपि “ अधिकस्याऽधिकं फलम् ' इस नियमको स्वीकार करके फिर प्रश्न करताहूं कि श्रीहरिभद्रसूरि महाराजने पञ्चाशकके सिवाय औरभी किसी पुस्तक में इस विषयका वर्णन किया है क्या ? जो हो तो फरमाइये.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org