Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(४४) केवलनाणानिन्वाणलाभा पडिसिद्धा ॥ जा य तप्पभवा सुरमाणुसरिद्धि जा य महिमागमस्स साहुजणाओ धम्मोवएसो वि तस्सणुसज्जणाय सावि पडिसिद्धा। तओ दीहकालठितिरं दंसणमोहणिज्जं कम्मं निबन्धइ असायवेयणिज्जं च ॥
भावार्थ-जिसने चैत्य द्रव्य (देवद्रव्य ) का नाश किया उसने जिन प्रातमाकी पूजा और दर्शनसे आनन्दित होनेवाले भव्यजीवोंके सम्यक्दर्शन श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान तथा मोक्षके लाभोंका प्रतिषेध किया है इतनाही नहीं बल्कि उस देवद्रव्यसे होनेवाली देवमनुष्यकी ऋद्धि-आगमोंकी महिमा साधुओंसे होते हुए धर्मोपदेशका लाभ और उसका प्रवर्तन इन सब गुणोंका भी निषेध किया समझना चाहिये । इस लिये चैत्यद्रव्य ( देवद्रव्य ) का नाश करनेवाले-दीघकालकी स्थितिवाले दर्शनमोहनीय और अशातावेदनीयकर्मको बांधते हैं।
पाठकजनो ! मेरेको बड़ा अफसोस होता है कि-मिथ्यात्व. मदिराके पानसे पूर्वोक्त ऐसे ऐसे शास्त्रकर्ताओंके अभिप्रायको वगैरही समझे बेचरदासने जैसे कोई पागलमनुष्य ज्यों मनमें आए त्यों बकवाद कर बैठता है वैसाही किया है पागलके बकवादसे पागलको विशेषहानि नहीं है परन्तु अनेक शास्त्रोंके अवलोकन करे वगैर वेचरदासने जो बकवाद किया है उससे उसको
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