Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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न्हाणित्ता दिव्वाए सुरभिए गंधकासाइए गात्ताई लुहेति गाताई अलिंपइ अणुर्लिपित्ता जिणपडिमाणं अहयाई सेताई दिव्वाई देवसजुअलाई नियंसेइ, नियंसित्ता अग्गेहिं वरेहिं मल्लेहि य अच्चेइ, अच्चित्ता पुप्फारुहणं गंधारुहणं आभरणारुहणं करेइ "
सारांश - वह विजय देवता चार हजार सामानिक देवता तथा अनेक वाणमन्तर देवदेवियोंकी साथ परिवृत हुआ हुआ सब ऋध्यादिकी साथ जहां सिद्धायतन था वहां आया और उस सिद्धायतनको प्रदक्षिणा देकर पूर्व दिशा के दरवाजेसे प्रवेश करके जहां देवछंदा थी वहां आया फिर जिनप्रतिमाके दर्शन होते के साथ प्रणाम किया. और मयूरपिच्छी लेकर प्रतिमाका प्रमार्जन किया, इसके बाद सुगन्धित जल से स्नान कराया. फिर दिव्य सुगन्धित वस्त्रसे अङ्गलंछन किया. बाद गोशीर्षचन्दनादि करके प्रभुको विलेपन किया तदनन्तर देवदूष्ययुगल चढ़ाया और श्रेष्ठ मालाओं से अर्चन किया. बाद में पुष्पारोहण गंधारोहण और आभूषणारोहण किया यानि पुष्पवासक्षेप - गहना वगैरे चढ़ाये । देखिये ! ऐसे ऐसे पाठोंके होने पर कौन कह सकता है कि'देवद्रव्य आगमविहित नहीं है ' तथा निशीथचूर्णिमें भी सोलहवें उद्देसे में प्राचीन देवद्रव्यको सिद्ध करने वाला पाठ
नीचे मुजब है. तद्यथा
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