Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(५८)
इसी भाव दया मन उल्लसी' ऐसे भावदयाके सिन्धु परमकृपाळु. भगवान महावीर प्रभुकं सूत्रोंमें कैसे उद्गार हैं ? इन बातोंको जाननेके लिये सूत्र पढनेकी जिज्ञासा हुई परन्तु वेचरदासके कथनसे तो यह साफही सिद्ध होता है कि उसका वांचनेका हेतु मात्र ‘देवद्रव्य आगममें है या नहीं ' इतना ही था । क्या वेचरदासके दिये हुए हेतुसे और उसकी की हुई कुतर्कोसे ही उसकी देवद्रव्यके साथ द्वेषपरायणता सिद्ध नहीं होती ? अवश्यमेव होती है। इस लिये ' आ करणथी' ऐसे अक्षरोंसे लेकर ' कोइज ठेकाणे नथी' इन अक्षरों तकके कथनके खण्डनको छोड़ आगेके. विषयका खण्डन कर दिखाइए ।
वेचरदास-' परन्तु आ शब्द तात्रिकयुगमां आपणा केटलाक साधुओए दाखिल कीधो छ ।
समालोचक-बेचरदास ! तुम्हारी अक्लको क्या हो गया है क्या किसी पोस्तीकी दोस्ती तो नहीं की ? जरा विचार तो करनाथा कि तान्त्रिकयुगके असरसे अगर साधुलोग शास्त्रोंमें शब्द दाखिल करते तो मदिरा पान करना मांस खाना मैथुन सेवन करना इत्यादि पांच मकार ' के माननेसे मोक्ष होता है ऐसे अक्षर दाखिल करते और जो त्याग है वह सर्व उड़ादेते क्यों कि तान्त्रिक लोकोंका ऐसा ही मानना है । देखिये तान्त्रिकोंने एक श्लोकमें क्या लिखा है।
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