Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(३४) लगातेहैं । अगर हम शक्ति होनेपर भी बेचरदासके भाषणकी उपेक्षा करें तो इस कथनानुसार हमारी भी यही दशा होवे, वरना बेचरदाससे हमारा लेशमात्र भी द्वेष नहीं है। देखिये कुमारपालनृपप्रबोधककलिकालसर्वज्ञश्रीमद्हेमचंद्राचार्यविरचितत्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्रके दशमपर्वमें लिखाहै कि
" राज्ञः कुमारपालस्य, तस्य पुण्येन भूयसा ।
खन्यमानस्थले मंक्षु, प्रतिमाऽऽविर्भविष्यति ।। ८३ । तदा तस्यै प्रतिमायै, यदुदायनभूभुजा ।
ग्रामाणां शासनं दत्तं, तदप्याविर्भविष्यति । ८४ । इत्यादि.
अर्थ- उस कुमारपालराजाके बड़े भारी पुण्यसे खुदातेहुवे स्थानमें जल्दी प्रतिमा प्रगट होगी ॥ ८३ ॥ तब उस प्रतिमाके वास्ते उदावनराजाने जिन जिन गामोंका शासन ( फरमान) दिया था सोभी प्रकट होगा ।। ८४ ॥ इस विषयक संवादमें तपोगच्छीयरत्नशेखरसूरिकृतश्राद्धविधिके छठे अधिकार में भी ऐसा अधिकार आता है
तद्यथा-पांशुष्टौ भूगता कपिलर्षिप्रतिष्ठिता प्रतिमा श्रीगुरुमुखाज्ज्ञाता कुमारपालनृपेण । पांशुस्थलखानने उदायननृपदत्तशासनपत्राऽन्विता सद्यः स्फुटीभूता। यथावत् प्रपूज्य प्राज्योत्सवैरणहिल्लपत्तने नीता ॥ नव्यकारितगरीयस्तर
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