Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
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(२९ ) पंच महाव्रतकी अपेक्षासे पांच राजपट्टक (वैराटरत्न ) और सत्तावीस गुण की अपेक्षासे २७ रिष्टमणि रक्खे ॥ ८९ ॥
बाकी रहे हुए दर्शनादि चार श्वेतपद में ६७ । ५१ । ७० । ५० । मोतियों से युक्त चंदनके लेपसे सफेद गोला श्रीपाल राजाने स्थापन किया । यहांपर भी मोतियोंकी संख्या दर्शनादि गतभेदोंकी अपेक्षासे समझनी चाहिये ॥ ९० ॥ ___अब पाठकों को बिचार करना चाहियेकि श्रीपाल महाराजने
ओलितपके उद्यापन में पूर्वोक्तविधिसे सिद्धचक्रके स्थापनकरनेमें हीरे मोती माणिक्य पन्ने प्रवाल नीलम आदि जो जो द्रव्य चढ़ाया उसको देवद्रव्य नहीं तो क्या कहें ? इससे सिद्ध होता है कि-देवद्रव्य मुनिसुव्रतस्वामीके समयमें भी था. इसलिये यह आधुनिक रिवाज नहीं कहा जा सकता ? फिरभी देखो ! यही आचार्य महाराज अपने बनाए हुए संबोधसप्ततिनामकप्रकरणमें लिखते हैं-कि
जिणपवयण वुद्धिकरं, पभावगं नाणदसणगुणाणं । व तो जिणदव्वं, तित्थयरत्तं ल ह ई जीवो ॥ ६६ ॥
अर्थ-ज्ञानदर्शन गुणोंके प्रभावक और जिनप्रवचनकी वृद्धि करनेवाले देवद्रव्यका रक्षण करता हुवा तीर्थकरपदको प्राप्त करता है. ॥ ६६ ॥ __ तटस्थ-जिनप्रवचन तथा ज्ञानदर्शन गुणोंकी वृद्धि देवद्रव्य से कैसे हो सकती है ? .
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