Book Title: Devdravyadisiddhi Aparnam Bechar Hitshiksha
Author(s): Sarupchand Dolatram Shah, Ambalal Jethalal Shah
Publisher: Sha Sarupchand Dolatram Mansa
View full book text
________________
(१६)
हमारे घरके अंधेरेको प्रत्यक्ष दूर होते देखा है, तो भी उन लोकोंके. कथनको असत्य मानते रहे। अन्तमें बादशाहने फरजियात ( Compulsory ) कायदा जारी किया तो भी उन मूखोंकी समझ में नहीं आया कि एक तो उम्रभर अंधेरा ढो दोकर मरजाएंगे और दूसरे राजआज्ञा भंग होनेसे दंडित होंगे, इस विचारके अभावके कारणसे राजाज्ञाको भी नहीं माना। आखिर में बादशाहने कुपित होकर उन हठवादियोंको शिर मुंडाकर, नाक कान कटवाकर काला मुँह करवानेके बाद गधे पर चढ़ाकर काले पानी भेजवा दिया। अब पाठकवर्ग इसके उपनयकी तरफ़ ध्यान दीजिए कि आजकल नवीन पंथको चलानेकी इच्छासे देवद्रव्यके भक्षणमें कुछ हर्ज नहीं है, उस देवद्रव्यसे शिक्षा देनी चाहिए, प्रथम प्रभुके मन्दिर गांव बाहिर थे, सुविहितगच्छके धोरी श्रीहरिभद्राचार्य जैसे प्रभावक पुरुषोंको भी 'चैत्यवासी थें' महावीर स्वामीके पीछे दोसो तीनसो या चारसो पांचसो वर्षोके बाद जैनसमाजका तमस्तरण शुरू हुआ, इत्यादि अनन्तकालतक संसारमें रुलानेवाली अनेकवातोंके कहनेवाले और इनके अनुमोदनकरनेवाले नीच अधमात्माएं जिन आकाशप्रदेशोंको अवगाहन करके रहते हैं उन आकाशप्रदेशात्मकस्थानको अज्ञानपुर नामक नगर समझे, और सूत्रमर्यादाके लोपी पेटके लिए अज्ञानांध मनुष्योंको खुश करने के लिए ज्यों दिलमें आवे त्यों बकबाद करने वाले, पूर्वधराचार्योके निन्दक पुरुषोंके सहवास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org