Book Title: Char Tirthankar
Author(s): Sukhlal Sanghavi, Shobhachad Bharilla, Bhavarmal Singhi, Sagarmal Jain, Dalsukh Malvania
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 12
________________ ५ : भगवान् ऋषभदेव और उनका परिवार] पञ्चमी के नाम से जैनेतर वर्ग में सर्वत्र मानी जाती है । यही पञ्चमी जैन-परंपरा में सांवत्सरिक पर्व के रूप में मानी जाती है। जैनपरंपरा में सांवत्सरिक पर्व दूसरे सब पर्यों को अपेक्षा ऊँचा है और आध्यात्मिक होने से पर्वाधिराज माना जाता है। यही पर्व वैदिक और ब्राह्मण-परंपरा में ऋषिपञ्चमी के पर्व के रूप में माना जाता है । यह पञ्चमी वैदिक-परंपरा के किसी ऋषि के स्मारक के रूप में मानी जाती हो, ऐसा मेरे जानने में नहीं आया। दूसरी तरफ जैन लोग पञ्चमी को सांवत्सरिक पर्व समझ कर उसे महान् पर्व का नाम देते हैं और उस दिन सर्वोत्तम आध्यात्मिक जीवन बिताने को यत्नशील रहते हैं। मुझे लगता है कि जैन और वैदिक-परंपरा में भिन्नभिन्न नाम से प्रसिद्ध, इन दोनों पर्यों को एक ही दिन भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी को मानने की प्रथा किसी समान तत्त्व को लेकर है और वह तत्त्व मेरी दृष्टि में ऋषभदेव के स्मरण का है। एक अथवा दूसरे कारण से आर्यजाति में ऋषभदेव का स्मरण चला आता था और उसके निमित्त से भाद्रपद शुक्ला पञ्चमी पर्व रूप में मानी जाती थी। आगे जाकर जब जैन-परंपरा निवृत्ति मार्ग की प्रधानता की ओर मुड़ी तब उसने इस पञ्चमी को आध्यात्मिक शुद्धि का रूप देने के लिए इस पर्व को सांवत्सरिक पर्व के रूप में मनाना शुरू किया; जब कि वैदिक-परंपरा के अनुयायियों ने पूर्व परंपरा से चली आती हुई सामान्य भूमिका के अनुसार ही इस पञ्चमी को ऋषि पञ्चमी के रूप में मनाने का रिवाज चालू रखा। सचमुच ऋषिपञ्चमी नाम में ही ऋषभ की ध्वनि समाई हुई है। ऋषभपञ्चमी ही शुद्ध नाम होना चाहिये और उसी का कुछ अपभ्रंश हुआ नाम ऋषिपञ्चमी है। अगर यह कल्पना ठीक हो तो जैन और जैनेतर दोनों वर्गों में प्राचीन काल से चली आती हुई ऋषभदेव की मान्यता की पुष्टि होती है। अवधूत पंथ में ऋषभ की उपासना दूसरी और खास महत्त्व की बात उपासना के विषय की है। बंगाल जैसे किसी प्रांत में कुछ लोग हैं, चाहे उनकी संख्या अधिक न हो अथवा वे विख्यात न हों, जिनका ऋषभ की उपासना में विश्वास है, और जो ऋषभ को एक अवधूत एवं परम त्यागी योगी समझ कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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