________________
३ : भगवान् ऋषभदेव और उनका परिवार ]
भी कहते हैं । यह ग्रंथ आठवीं शताब्दी के बाद का तो नहीं है । दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों संप्रदायों में ऋषभदेव का जो संस्कृत भाषा में लिखा हुआ चरित्र है वह भागवत से प्राचीन नहीं है; भागवत के पीछे का ही है । हाँ ! जैन परंपरा में खास कर श्वेताम्बर परंपरा में ऋषभदेव का प्राकृत भाषा में लिखा हुआ चरित्र भागवत के ऋषभचरित्र के अपेक्षा भी प्राचीन होने के विषय में कदाचित् ही सन्देह है | भागवत में जो ऋषभचरित्र का वर्णन है और वह जिस तरह जैन ग्रन्थों के ऋषभचरित्र के साथ मेल खाता है उस पर से पहले पहल देखने वाले को ऐसा प्रतीत होगा कि जनसमाज में बहुमान की जड़ गहरी जमने के बाद ही जैन कथानकग्रंथों में से भागवत के कर्त्ता ने ऋषभदेव को अपने ग्रंथ में अपनाया होगा', जिस तरह शुरू में त्याज्य गिने जाने वाले बुद्ध का भी उनकी लोक - प्रतिष्ठा जम जाने के बाद पीछे से कितने ही पुराणकारों ने अवतारी पुरुष के रूप में उल्लेख किया
सारी प्रार्य जाति के उपास्य ऋषभदेव
पर मुझे तो ऐसा लगता है कि वास्तविक हकीकत कुछ दूसरी ही है । भागवतकार के समय ऋषभदेव की अपेक्षा पार्श्वनाथ या महावीर की प्रतिष्ठा, ख्याति या उपासना जरा भी कम नहीं थी । शायद जैन परंपरा में पार्श्वनाथ या महावीर का स्थान उस समय भी आसन उपकारक होने से अधिक आकर्षक था । ऐसा होते हुए भी भागवतकार सिर्फ ऋषभ का ही चरित्र ले और वर्णन करे, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ या महावीर के चरित्र को अन्य पुराणकारों की तरह भागवतकार स्पर्श न करे, इसका कोई कारण होना चाहिये । वह कारण मेरी दृष्टि में यह है कि ऋषभदेव की मान्यता, पूजा, उपासना की यशोगाथा जैन परंपरा की तरह जैनेतर परंपरा में भी शुरू से ही कम-ज्यादा अंश में एक अथवा दूसरी तरह अवश्य चालू थी । इसी लिए यह भी संभव है कि जिन संस्कृत या प्राकृत ब्राह्मण पुराणों के आधार पर भागवत की नये सिरे से रचना किये जानें का ऐतिहासिक मत है उन प्राचीन संस्कृत, प्राकृत पुराणों में
1. श्रीमदभागवत पंचम स्कंध ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org