Book Title: Bhattarak Ratnakirti Evam Kumudchandra Vyaktitva Evam Kirtitva Parichay
Author(s): Kasturchand Kasliwal
Publisher: Mahavir Granth Academy Jaipur
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२६. वादिवन्द्र
३१. विष्णुकवि
३३. समयसुन्दर ३५. दामो
२७, मानसिंह भान ३३ श्रीसार
२१ कोि
४३. हे विजय
४५. जयराज
४७ भट्टारक कुमुदचन्द
४६. भ० अभगचन्द
५१. भ० रत्न बन्द
५३. ० जय भागर
५५. सुगलिसागर
५.७ कल्याण सागर ५६ विद्यासागर
६१. आचार्य चन्द्रकीति
६३. धर्मचन्द्र
६५, मेघसागर
६७. गोपालदास
३०. कनककति
३२. हीरकल
३४. जिनराज सूरी
३६. कुशललाभ
३८. उदयराज
४०. गरि महानन्द रानीग
४४. पदमराज
४९. भट्टारक रनकीर्ति
४८. शांतिदास
५०. शुभचन्द्र
५.२. श्रीपाल
५४. गणेश
५६. मोर
५८. आंद सागर
६०. ब्रह्म धर्मरुत्रि
६२. संगमगागर
६४. राधव
६६. धर्मसागर ६८. पाण्डे हेमराज
पूर्व पीठिक
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इस प्रकार ७० वर्ष में ६० ही जैन कवियों का होना किसी भी जाति समाज एवं देश के लिये गौरव की वस्तु है । वास्तव में जैन कवियों ने देश में हिन्दी कृतियों का धुआंधार प्रचार किया और हिन्दी भाषा में अधिक से अधिक लिखने का प्रयास किया। इन कवियों में महाकवि बनारसीदास, रूपचन्द्र पाण्डे जिनदास, पाण्डे राजमहल, भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र तथा श्वेताम्बर कवि समयसुन्दर एवं हीरकलश तथा कुशललाभ के प्रतिरिक्त शेष कवि समाज के लिये एवं हिन्दी जगत के लिये अज्ञात से हैं। एक बात और महत्वपूर्ण है कि भट्टारक रनकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र जैसे सन्त गुजरात वासी होने पर भी उन्होंने हिन्दी को अपनी रचनाओं माध्यम बनाया। यही नहीं इस भट्टारक परम्परा के अधिकांश विद्वान् शिष्य प्रशिष्यों ने भी इसी भाषा को अपनाया और उसमें पद, गीत जैसे सरल एवं लघु रचनानों को प्राथमिकता दी । भट्टारक रत्नकीर्ति एवं कुमुदचन्द्र को परम्परा में होने वाले कवियों के अतिरिक्त शेष कवियों का संक्षिप्त गरिनय निम्न प्रकार है :