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प्रतिवर्ष भी जीवन में उतरता रहे तो इसे जीवन में आने के लिए वहत्तर वर्ष तो लग ही जायेंगे। उपदेश केवल गिनने और पढ़ने के लिए ही नहीं होते, वे मनन और आचरण करने के लिए भी होते हैं । प्यास बुझाने के लिए सारा सागर ही पीना नहीं होता! पानी के दो बूंट ही काफी हैं इस के लिए, किन्तु पीये तो? न पीने वाले के लिए कुंआ, तालाब, सरिता
और सागर सब वेकार हैं । पीने वाले के लिए मीठे पानी की एक गागर वहुत है । क्या गलत है यह ? ।
यह पुस्तुक भी एक 'गागर में सागर' और 'बिन्दु में सिन्धु' के समान है । यह परम प्रिय वहत्तर ७२ का अंक भगवान महावीर की मधुर स्मृति को आप के मानस में सदैव जाग्रत रख कर आप को अपने लक्ष्य की प्रेरणा देता रहेगा।
मनोहर मुनि 'कुमुद