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१. गाथा
२
रागो य दोसो वि य कम्मबीयं कम्मं च मोहव्यभवं वयंति । कम्मं च जाईमरणस्स मूलं, दुक्खं च जाईमरणं वयंति ॥
अर्थ
उत्त० अ० ३२ गां० ७
राग और द्वेष- ये दो ही कर्म के वीज हैं । कर्म मोह से उत्पन्न होता है और कर्म ही जन्म मरण का मूल है। वस्तुतः जन्म-मरण को हो दुख कहा जाता है ।