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. ८ गाथा
दिळं मियं असंदिद्धं पडिपुण्णं विअंजियं । अयंपिरमणुदिग्गं भासं निसिर अत्तवं
दश० अ० ८ गा० ४९
अर्थ
___ आत्म-ज्ञानी सदा दृष्ट, परिमित, असन्दिग्ध, परिपूर्ण, स्पष्ट, अनुभूत, वाचालता से रहित और किसी प्राणी के लिए उद्विग्नकारक न हो, ऐसी वाणी
बोले।