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१. है कहाँ दुश्मन तेरा ? इतना नहीं तुझ को पता !
अज्ञान में तू बाहर के, नित शत्रुओं से लड़ रहा,
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२. तेरे ही मन का विम्ब है, सर्वत्र बाहर पड़ रहा ।
तू स्वयं निज को देखता है, बाहर में अच्छा बुरा ॥
३.
न बाहर के संग्राम में, तुम नष्ट जीवन को करो ।
अपने ही मन को रोक कर ? अपने विकारों से लड़ो ॥
४. ज्ञान से मन
जीत कर,
तू सुख शाश्वत पायेगा ||
★ महावीर ने यह तुवचन, प्रिय शिष्य गौतम से कहा ॥