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१. सब ने विनय को हो,
धर्म का मूल माना है । मोक्ष उसका रस परम,
सुख का. खजाना है ॥ .
२. विनय से हो कीति,
श्रुत ज्ञान मिलता है । सन्मान व निर्माण,
फिर निर्वाण मिलता है ।।
६. विनय फो साधक ! समक्ष,
जोदन को सच्ची सम्पदा । ★ महाबोर ने यह सुपचन,
प्रिय शिल गौतन से पहा ॥