Book Title: Bhagavana Mahavira ke Manohar Updesh
Author(s): Manoharmuni
Publisher: Lilam Pranlal Sanghvi Charitable Trust

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Page 178
________________ १३४ ६७. गाया .. सुवण्ण रुप्पस्स य पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंखया । नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि इच्छा हु आगाससमा अणंतिया। . उत्त० अ० ९ गा० ४८ अर्थ सोने और चांदी के कैलाश के समान असंख्य पर्वत भी यदि किसी के पास हो जाये तो भी लोभी मनुष्य के लिए वे कुछ भी नहीं क्योंकि इच्छा आकाश की तरह अनन्त होती है।

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