Book Title: Bhagavana Mahavira ke Manohar Updesh
Author(s): Manoharmuni
Publisher: Lilam Pranlal Sanghvi Charitable Trust

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Page 180
________________ ६८. गाया तेणे जहा संधि महे गहीए ___ सकम्मणा किच्चइ पावकारी। एवं पया पेच्च इहं च लोए कडाण कम्माण न मुक्ख अस्थि ।। उत्त० अ० ४ गा०३ जैसे चोर सेंध के मुख पर ही पकड़ा जाने पर अपने पापकर्म से दुख उठाता है ऐसे ही पापी जीव इस लोक तथा परलोक में अपने कर्मों का फल भोगता है। कृत कर्म को भोगे विना जीव का छुटकारा नहीं होता।

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