Book Title: Bhagavana Mahavira ke Manohar Updesh
Author(s): Manoharmuni
Publisher: Lilam Pranlal Sanghvi Charitable Trust

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Page 179
________________ २, लोभी मनुष्य को जगत में भो, सुख कभी मिलता नहीं । मन के सरोवर में फमल, सन्तोष का खिलता नहीं ।। २. स्थणं के और रजत के, फलाश जिसके पास है । लोभ के कोटे वे फिर भी, यासना के दास है ॥ ३ अनन्त नभ का डोर जैसे, फोई पा सकता नहीं । मानप हो इछा फा भो. ऐसे अन्त ला सपता नहीं ।। :, लोभ हो तो शप :, संसार में हर पार हा: * मार में यह मुएनन निय शिद नौतम परा

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