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१. सिर पर पाप की गठरी,
उठा कर कौन ले जाता । पाप के विकट सागर में,
गोते कौन है खाता ? ।। २. साधफ मोह का बन्धन,
पलक में तोड़ सकता है । मां और पुत्र के भी,
मोह से मुख मोड़ सकता है ।। ३. मगर मुश्किल है दिल से,
. इक यशेच्छा को हटा देना । पूजा के मृदुल कुसुमों से,
इस मन को बचा लेना ।।
४. मान-सन्मान के भसे,
हमेशा पाप फरते हैं। पूजा फो लो पर वह,
शलम वन-वन के गिरते है ।।
५. यश के वास्ते साधा,
फपट पा जाल है बनता । * महापौर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतन से पहा ।।