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(७)
१. सरलता का जो धनी,
नित शुद्धता का दास है । शुद्ध मन में ही सदा,
मंगल धर्म का वास है ।।
२ घृत-सिञ्चन आग की ज्यों,
ति फा वर्धन करे । आत्म-धर्म का साधफ भी,
निर्वाण फा अर्जन फरें ।।
2. सापना का बोज सायद !
तमा लो है सरलता । ★ महापोर में यह उपचन,
प्रिय गिर गौतम ले पहा ।