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१. तू शान्ति से क्रोध का,
उपशमन करना सीख ले। मदु भाव से अहंकार का,
नियमन करना सीख ले ।
२. ऋजता से छल के पाप का,
तू दमन करना सीख ले। सन्तोष से तू लोप फा
हनन फरना सीख ले ॥
३. इस तरह साधक करे,
निज आत्मा को साधना । * महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ।।