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१
मनुष्य के चारों तरफ,
फितना बड़ा संसार है। जड़ व चेतन का मिलन हो,
लोक का आकार है ।।
२. वे बस संज्ञक जीव हैं,
है व्यक्त जिनकी चेतना । उनका स्थावर नाम है,
अध्यक्त जिनको वेदना ।।
३ है तार संयम फा यही,
हिंसा किसी की न करे । हाथ से और पैर से,
न प्राण प्रिय उनका हरे ।।
४. न कुछ भी ले आज्ञा बिना,
है सन्त फा व्रत याचना । * महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ।।