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१. जो जो पाप पथिक पाप से, नित धन कमाता है ।
अमो रस समझ कर इसको,
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वह अपना सब गंवाता है ||
किसी से राग करता है,
किसी से द्वेष करता है ।
हिंसा-वैर के पापों से,
४. मधु
जीवन घट को भरता है ॥
वान्घ कर कर्म के बन्धन,
वह खाली हाथ जाता है ।
भटकता है चौरासी में,
नरक के दुख उठाता है ||
सा,
लिपटी खड्ग
है भोग के तुख का मजा ।
★ महावीर ने यह सुवचन, प्रिय शिष्य गौतम से कहा ।।