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(४)
१
जो बाहर से तो साधक है,
पर दुःशील अभिमानी है । जो गुरु जनों का निन्दक है,
और विद्वेषी अज्ञानी है।
२. जिस की आँखों में शर्म नहीं,
जो मुंह आए कह देता है । जो त्याग मूत्ति गुरु जन को भी,
आड़े · हाथों लेता है ॥
३. सड़े हुए कानों वाली वह,
फुतिया-सा दुख पाता है । वह धर्म-संघ और धर्म गण से,
वाहर निकाला जाता है ।।
४. सन्मान मिल सकता नहीं,
अविनीत को संसार का। * महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ।।