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(३)
१. वाणी से ही संसार में,
मनुष्य को पहचान है । सत्य उस की शान है,
और सत्य उसका प्राण है ।।
२. जानी रहे गम्भीर नित,
थाचालता में न वहे। सन्देह रहित · देखा हुआ,
परिपूर्ण परिमित सत्य कहे ।।
६. अनुभूति में उतरा हुआ,
स्पष्ट हितमय प्रिय कहे । जो भी सुने छोटा-बड़ा,
हृदय फली उसकी खिले ।।
४. न कुवचन मुख से कहे,
जो दुसमय हो विष भरा। * महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा ॥