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१.
२.
३.
जगत की मधु शान्ति न
११
त्रिताप की उपशान्ति,
संयम,
धर्म ही आधार है ।
सम्प्रदाय से परे, शुद्ध,
स्वर्ग
यह धर्म का उपकार है ||
धर्म का स्वरूप है ।
तपस्या व दया,
यह धर्म का शुद्ध रूप है ॥
मन वचन और कर्म से,
यह धर्म जिनके पास हं ।
का भी देवगण,
उनके चरण का दास है ||
४. संसार में मंगलमय है, धर्म का हो पथ तदा ।
★ महावीर ने यह सुवचन, प्रिय शिष्य गौतम से कहा ॥