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१
इक राग है, इक द्वेष है,
___ कर्म का यह वीज है । जोव को जो वान्धती यह,
एक ही बस चीज है ।
२
आवागमन का मूल जो,
उस कर्म को मोह खान है। आत्मा का ज्ञान मोह-वश,
चन रहा अज्ञान है ॥
३. इफ जन्म है इक मरण है,
संसार के ये दुःख महा। * महावीर ने यह सुवचन,
प्रिय शिष्य गौतम से कहा।