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बहत्तर उपदेश ही क्यों ?
मैं ने अपने इस संयोजन में वहत्तर ७२: ही उपदेशों का संग्रह किया है । क्योंकि यह अंक भगवान के आयुष्य का परिचायक है | भगवान के चारों ही कल्याणक बहत्तर वर्ष में पूरे हो गये । मनुष्य में यदि आत्मबल हो तो वह छोटी सी उमर में भी बहुत कुछ कर लेता है । भगवान ऋषभ को चौरासी लाख पूर्व की आयु में जो कुछ मिला वह महावीर ने केवल बहत्तर वर्षों में ही उपलब्ध कर लिया । केवल जीवन में उत्कट वैराग्य और त्याग की आवश्यकता है । कभी कभी हजारों उपदेश सुनने पर भी मन में वैराग्य नहीं जागता और न ही मन त्याग के लिए तैयार होता है और कभी एक ही उपदेश जीवन में जादू का काम कर जाता है ! जीवन में उपादान उपस्थित हो तो फिर बाहर का निमित्त भी काम कर जाता है । नहीं तो तीर्थंकर की वाणी भी भगवान महावीर की पहली देशना की तरह निष्फल हो जाती है । अन्तरंग कहाँ कितना जाग्रत है । यह व्यवहार ज्ञान से परे है । व्यवहार में तो शिक्षा, प्रेरणा तथा उद्बोधन ही प्रधान है । उस की उपयोगिता इस लोक में सोलह आना सत्य है ।
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जब एक उपदेश भी काफी होता है तो फिर क्या बहत्तर उपदेश कम हैं ? मुमुक्षु के लिए ये बहुत हैं । एक एक उपदेश
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