Book Title: Bhadrabahu Sanhita Part 2
Author(s): Bhadrabahuswami, Kunthusagar Maharaj
Publisher: Digambar Jain Kunthu Vijay Granthamala Samiti

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Page 12
________________ भद्रबाहु संहिता ध्वनि सब की एक समान थी। वही तत्त्व, वही ज्ञान, वही वस्तु, वही स्वरूप, उसी द्वादशांक ज्ञान का प्रतिपादन किया, कोई अन्तर नहीं था, भगवान महावीर वर्तमान चौबीसीयों में अंतिम तीर्थंकर थे, ये चौथैकाल के कुछ वर्ष बाकी रहे तब ही जन्म लेकर मोक्ष चले गये, अभी महावीर तीर्थकर का काल ही चल रहा है, भगवान महावीर ने 30 वर्ष की आयु में दीक्षा ग्रहण करली, बारह वर्ष घोर तपश्चरण किया, 42 वर्ष की आयु में आपको केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। 30 वर्ष तक आप केवल ज्ञान लक्ष्मी से शोभित होकर सर्वत्र बिहार कर मुनि धर्म और श्रावक धर्म का उपदेश दिया। द्वादशांग वाणी का प्रचार किया। आप के समवशरण में प्रमुख गणधर गौतम स्वामी थे और प्रमुख श्रोता राजा श्रेणिक थे। भगवान महावीर बहत्तर वर्ष की आयु में अष्ट कर्मों से रहित होकर पावापुर से मोक्ष चले गये, उसी दिन सांयकाल में गौतम गणधर को केवल ज्ञान प्राह हुआ। मौतम गजधर स्वामी ने भी भगवान की कही हुई बात का ही भव्य जीवों को बारह वर्ष तक उपदेश दिया और वह भी मोक्ष चले गये, गौतम स्वामी को मोक्ष हुआ, उसी दिन सुधर्माचार्य को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ, भगवान सुधमाचार्य ने भी उसी द्वादशांश वाणी का उपदेश दिया ये भी बारह वर्ष तक उपदेश देकर मोक्ष चले गये, जिस दिन भगवान सुधर्माचार्य को मोक्ष हुआ, उसी दिन मुनिराज जम्बु स्वामी को केवल ज्ञान प्राप्त हुआ। जम्बु स्वामी ने भी अपनी दिव्य ध्वनि के द्वारा बारह वर्ष भव्यों को उपदेश दिया। जम्बु स्वामी के मोक्ष जाने के बाद केवल ज्ञान लक्ष्मी मुनियों में प्रकट होना समाप्त हो गई। जम्बु स्वामी के बाद कोई भी मुनि केवल ज्ञानी न ही हुआ, क्योंकि पंचमकाल प्रारंभ हो गया। भगवान महावीर के मोक्ष जाने के बाद 62 वर्ष में क्रमश: ये तीन केवली हुए, उनके बाद पांचभुत केवली हुए, पांचों ही श्रुतकेवली 100 वर्षों के अन्दर हुए इनमें अंतिम श्रुत केवली भद्रबाहु स्वामी थे, आप भी द्वादशांग को जानने वाले अष्टांग निमित्त ज्ञानी थे, अर्थात् भद्रबाहु स्वामी के जीवन में अनेक घटना घटी हैं जिसको आचार्यों ने भद्रबाहु चरित्र में लिखा है, इन्हीं भद्रबाहु श्रुतकेवली के द्वारा वर्णित यह भद्रबाहु संहिता है। ये भद्रबाहु बालपन से ही बड़े बुद्धिमानी थे, एक बार गोवर्द्धनाचार्य नगर की और पधार रहे थे, नगर के बाहर कुछ बालक खेल रहे थे, सहसा उन खेलते हुए बालकों से गोवर्द्धनाचार्य पूछ बैठे, बालकों नगर कितनी दूर है, उसी समय होनहार बालक भद्रबाहु बोल

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