Book Title: Avashyak Sutram Part 04
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 37
________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-४ // 1370 // जिस्स वाइयं झाणमेवं तु अयताभाषाविवर्जिनो-दुष्टवाक्परिहर्तुरित्यर्थः, वाचिकंध्यानमेव यथा कायिकम्, तुशब्दोऽवधारणार्थ 5. पञ्चमइति गाथार्थः॥१४७६ ॥साम्प्रतं स्वरूपत एव वाचिकध्यानमुपदर्शयन्नाह- एवंविहा गिरा एवंविधेति निरवद्या गी:- वागुच्यते / मध्ययनं कायोत्सर्गः, मे त्ति मया वक्तव्या एरिस त्ति ईदृशी सावद्या न वक्तव्या, एवमेकाग्रतया विचारितवाक्यस्य सतो भाषमाणस्य वाचिकं नियुक्तिः ध्यानमिति गाथार्थः॥ 1477 // एवं तावद् व्यवहारतो भेदेन त्रिविधमपि ध्यानमावेदितं, अधुनैकदैव एकत्रैव त्रिविधमपि / |1479-84 दर्श्यते- मणसा वावारतो मनसा- अन्तःकरणेनोपयुक्तः सन् व्यापारयन् कायं-देहं वाचं- भारती च तप्परीणामो तत्परिणामो उच्छ्रितोच्छूि तादिस्वरूपं। विवक्षितश्रुतपरीणामः, अथवा तत्परिणामो-योगत्रयपरिणामः स तथाविधःशान्तो योगत्रयपरिणामो यस्यासौ तत्परिणामः, भङ्गिकश्रुतं- दृष्टिवादान्तर्गतमन्यद्वा तथाविधं गुणतो त्ति गुणयन् वर्त्तते त्रिविधेऽपि ध्याने मनोवाक्कायव्यापारलक्षणे इति गाथार्थः // 1478 // अवसितमानुषङ्गिकम्, साम्प्रतं भेदपरिमाणं प्रतिपादयताऽध उत्सृतोच्छ्रितादिभेदो यो नवधा कायोत्सर्ग उपन्यस्तः स यथायोगं व्याख्यायत इति, तत्र नि०-धम्म सुक्कं च दुवे झायइ झाणाइँजो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो उसिउसिओ होइ नायव्वो॥१४७९ / / नि०- धम्म सुक्कं च दुवे नविझायइ नविय अट्टरुद्दाई। एसो काउस्सग्गो दव्युसिओ होइ नायव्वो॥१४८०॥ नि०- पयलायंत सुसुत्तो नेव सुहं झाइ झाणमसुहं वा / अव्वावारियचित्तो जागरमाणोवि एमेव // 1481 // नि०- अचिरोववन्नगाणं मुच्छियअव्वत्तमत्तसुत्ताणं / ओहाडियमव्वत्तं च होइ पाएण चित्तंति // 1482 // नि०- गाढालंबणलग्गं चित्तं वुत्तं निरयणं झाणं / सेसं न होइ झाणं मउअमवत्तं भमंतं वा // 1483 // नि०- उम्हासेसोवि सिही होउंलद्धिंधणो पुणो जलइ / इय अवत्तं चित्तं होउंवत्तं पुणो होइ॥१४८४ / / // 1370 //

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