Book Title: Avashyak Sutram Part 04
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust
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________________ 5. पञ्चम श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-४ | // 1409 // चास्य सम्यक्त्वप्राप्त्योत्कृष्टकर्मापेक्षयेति, उक्तं च-सत्तण्हं पगडीणं अभितरओ उ कोडीकोडीए / काऊण सागराणं जइ लहइल चउण्हमण्णयरं॥१॥ अन्ये पठन्ति- एमेवय उस्सगं ति, न चायमतिशोभन: पाठ इति गाथार्थः // 1540 // यतश्चैवमत:- | मध्ययनं कायोत्सर्गः, निक्कूडं सविसेसं गाहा, निष्कूटमित्यशठं सविशेष मिति समबलादन्यस्मात् सकाशात्, न चाहमहमिकया, किंतु वयोऽनुरूपम्, | नियुक्तिः स्थाणुरिवो देहो निष्कम्पः समशत्रुमित्र: कायोत्सर्गंतु तिष्ठेत्, तुशब्दादन्यच्च भिक्षाटनाद्येवंभूतमेवानुतिष्ठत(ठेत् इति गाथा- 1542-43 | निर्मायर्थः॥१५४१॥ इदानीं वयो बलं चाधिकृत्य कायोत्सर्गकरणविधिमभिधत्ते मुत्सर्गः। नि०- तरुणो बलवंतरुणो अदुब्बलो थेरओ बलसमिद्धो।थेरो अबलो चउसुवि भंगेसुजहाबलं ठाई॥१५४२॥ नियुक्तिः तरुणो बलवान् 1 तरुणश्च दुर्बल: 2 स्थविरो बलसमृद्धः 3 स्थविरो दुर्बल: 4 चतुर्ध्वपि भङ्गकेषु यथाबलं तिष्ठति 1544 कायोत्सर्गे बलानुरूपमित्यर्थः, न त्वभिमानतः, कथमनेनापि वृद्धेन तुल्य इत्यबलवतापि स्थातव्यम्, उत्तरत्रासमाधानग्लानादावधिकरणसम्भवादिति गाथार्थः॥१५४२॥ गतं सप्रसङ्गमशठद्वारम्, साम्प्रतं शठद्वारावसरस्तत्रेयं गाथा नि०- पयलायइ पडिपुच्छइ कंटययवियारपासवणधम्मे / नियडी गेलन्नं वा करेइ कूडं हवइ एयं // 1543 // कायोत्सर्गकरणवेलायां मायया प्रचलयति-निद्रां गच्छति, प्रतिपृच्छति सूत्रमर्थं वा, कण्टकं अपनयति, वियार त्ति पुरीषोत्सर्गाय गच्छति, पासवणे त्ति कायिकां व्युत्सृजति, धम्मे त्ति धर्मं कथयति, निकृत्या मायया ग्लानत्वं वा करोति कूट भवत्येतद्- अनुष्ठानमिति गाथार्थः॥ 1543 // गतं शठद्वारम्, अधुना विधिद्वारमाख्यायते, तत्रेयं गाथा नि०-पुव्वं ठंति य गुरुणो गुरुणा उस्सारियंमि पारेंति / ठायंति सविसेसंतरुणा उ अनूणविरिया उ॥१५४४ // 0 सप्तानां प्रकृतीनामभ्यन्तरे तु कोटीकोट्याः। कृत्वा सागरोपमाणां यदि लभते चतुर्णामन्यतरत् (तर्हि लभते) // 1 // विधिः, दोषाश्च। // 1409 //

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