Book Title: Avashyak Sutram Part 04
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 162
________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारिक वृत्तियुतम् भाग-४ // 1495 // ६.षष्ठमध्ययनं प्रत्याख्यान:, नियुक्तिः 1580-85 प्रत्याख्यानशुद्धिः / गतमद्धाप्रत्याख्यानम्, इदानीं उपसंहरन्नाह- (ग्रं०२१५००) नि०- भणियं दसविहमेयं पच्चक्खाणं गुरूवएसेणं / कयपच्चक्खाणविहिं इत्तो वुच्छं समासेणं // 1580 // नि०- आह जह जीवघाए पच्चक्खाए न कारए अन्नं / भंगभयाऽसणदाणे धुव कारवणे य नणु दोसे // 1581 // नि-नोकयपच्चक्खाणो, आयरियाईण दिज्ज असणाई। न य विरईपालणाओवेयावच्चं पहाणयरं // 1582 / / नि०- नोतिविहंतिविहेणं पच्चक्खइ अन्नदाणकारवणं / सुद्धस्स तओ मुणिणो न होइ तब्भंगहेउत्ति // 1583 // नि०- सयमेवणुपालणियंदाणुवएसोय नेह पडिसिद्धो। ता दिज्ज उवइसिज्ज व जहा समाहीइ अन्नेसिं // 1584 // नि०- कयपच्चक्खाणोऽवि य आयरियगिलाणबालवुड्डाणं / दिज्जासणाइ संते लाभे कयवीरियायारो // 1585 // N भणितं दशविधमेतत् प्रत्याख्यानं गुरूपदेशेन, कृतं प्रत्याख्यानं येन स तथाविधस्तस्य विधिस्तं अतः ऊर्द्धं वक्ष्ये समासेन सङ्केपेणेति गाथार्थः ॥१५८०॥प्रत्याख्यानाधिकार एवाह परः, किमाह?- यथा जीवघाते- प्राणातिपाते प्रत्याख्याते सत्यसो प्रत्याख्याता न कारयत्यन्यमिति-न कारयति जीवघातं अन्यप्राणिनमिति, कुतः?- भङ्गभयात्- प्रत्याख्यानभङ्गभयादित्यर्थ, भावार्थः- अश्यत इत्यशनं- ओदनादि तस्य दानं-अशनदानं तस्मिन्नशनदाने, अशनशब्दः पानाद्युपलक्षणार्थः ततश्चैतदुक्तं भवति-कृतप्रत्याख्यानस्य सतः अन्यस्मै अशनादिदाने ध्रुवं कारणमिति- अवश्यं भुजिक्रियाकारणम्, अशनादिलाभेसति भोक्तुर्भुजिक्रियासद्भावात्, ततः किमिति चेत्, ननुदोषः-प्रत्याख्यानभङ्गदोष इति गाथार्थः // १५८१॥अत:नो कयपच्चक्खाणो आयरियाईण दिज्ज असणाई यतश्चैवमतः न कृतप्रत्याख्यानः पुमानाचार्यादिभ्य आदिशब्दादुपाध्यायतपस्विशैक्षकग्लानवृद्धादिपरिग्रहः दद्यात्, किं?- अशनादि, स्यादेतद्- ददतो वैयावृत्यलाभ इत्यत आह- न च विरतिपालनाद् // 1495 //

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