Book Title: Avashyak Sutram Part 04
Author(s): Punyakiritivijay
Publisher: Shripalnagar Jain Shwetambar Murtipujak Derasar Trust

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Page 64
________________ श्रीआवश्यक नियुक्तिभाष्यश्रीहारि० वृत्तियुतम् भाग-४ // 1397 // 5. पञ्चममध्ययनं कायोत्सर्गः, नियुक्तिः 1525-28 कायोत्सर्गव्यत्ययः क्षामणा। करेंति, एत्थवि नमोक्कारेण पारेत्ता सुयणाणविसुद्धीनिमित्तं सुयणाणत्थयं, कहेंति, काउस्सग्गं च तस्सुद्धिनिमित्तं करेंति, तत्थय पाओसियथुइमादीयं अधिकयकाउस्सग्गपज्जंतमइयारंचिंतेइ, आह-किंनिमित्तं पढमकाउस्सग्गे एव राइयाइयारंण चिंतेति?, उच्यते, नि०- निद्दामत्तो न सरइ अइआरंमा य घट्टणं ऽणोऽन्नं / किइअकरणदोसा वा गोसाई तिन्नि उस्सग्गा // 1525 // निद्दामत्तो- निद्दाभिभूओ न सरइ- न संभरइ सुष्टु अइयारं मा घट्टणं ऽणोऽण्णं अंधयारे वंदंतयाणं, कितिअकरणदोसा वा, अंधयारे अदंसणाओ मंदसद्धा न वंदंति, एएण कारणेणं गोसे-पच्चूसे आइए तिण्णि काउस्सग्गा भवन्ति, न पुण पाओसिए जहा एक्कोत्ति // 1525 / / नि०- एत्थ पढमो चरित्ते दंसणसुद्धीऍबीयओहोइ। सुयनाणस्स य ततिओ नवरं चिंतंति तत्थ इमं // 1526 // नि०- तइए निसाइयारं चिंतइ चरमंमि किंतवं काहं? / छम्मासा एगदिणाइहाणि जा पोरिसि नमोवा॥१५२७॥ नि०- अहमविभेखामीमितुब्भेहिँ समं अहं च वंदामि / आयरियसंतियं नित्थारगा उगुरुणो अवयणाई॥१५२८॥ ततो चिंतिऊण अइयारं नमोक्कारेण पारेत्ता सिद्धाण थुइंकाऊण पुव्वभणिएण विहिणा वंदित्ता आलोएति, तओसामाइय- कुर्वन्ति, अत्रापि नमस्कारेण पारयित्वा श्रुतज्ञानविशुद्धिनिमित्तं श्रुतज्ञानस्तवं कर्षयन्ति, कायोत्सर्गं च तच्छुद्धिनिमित्तं कुर्वन्ति, तत्र च प्रादोषिकस्तुत्यादिकं अधिकृतकायोत्सर्गपर्यन्तमतिचारं चिन्तयन्ति / आह- किंनिमित्तं प्रथमकायोत्सर्ग एव रात्रिकातिचारं न चिन्तयन्ति?, 0निद्रामत्तः- निद्राभिभूतो न स्मरति सुष्टुतिचार मा घट्टनमन्योऽन्यं वन्दमानानामन्धकारे कृतिकर्माकरणदोषा वा- अन्धकारेऽदर्शनात् मन्दश्रद्धा न वन्दन्ते, एतेन कारणेन प्रत्यूषे आदौ त्रयः कायोत्सर्गा भवन्ति, न पुनः प्रादोषिके यथैक इति, O ततश्चिन्तयित्वाऽतिचारान् नमस्कारेण पारयित्वा सिद्धाणमिति स्तुतिं कृत्वा पूर्वभणितेन विधिना वन्दित्वाऽऽलोचयन्ति, 2

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